क्या लिखें समझ नहीं आता
मेरे दिल को आजकल कुछ नहीं भाता
सुबह उठ के ही ऑफिस चला जाता
और शाम को थका हुआ वापस चला आता
याद करता हूँ उन्हें
तो लगता है महफूज़ हैं वो कहीं
दिल की तनहाइयों में
सदियाँ बीत गयी
याद आती है उनके साथ पहली मुलाक़ात
भीनी भीनी सी बूंदों की बारिश और वो क़यामत की रात
एक सुखमयी अहसास उनके साथ
जब उन्होंने प्यार से निहारा मुझे
उठी कोई कसक सीने में
और धीरे जब बिजली के कड़कने पर बाँहों में भर लिया था मुझे
चोरो तरफ स्वर्ग और असंख्य सतरंगी इन्द्रधनुषों से घिरे हुए थे हम
काश वो रात फिर आ जाए वो एहसास फिर से जगा जाए
इसी अरमान के साथ
जीते हैं हम
बीते लम्हों की यादें दिल में दफ़न किए हुए
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