Tuesday, August 31, 2010

एक सवाल


अभी हाल ही में हुई भारी बारिश में कई लोगों ने एन्जॉय किया तो कई लोगों के लिए ये बारिश तबाही का सबब बनी. दिल्ली में तो यमुना नदी खतरे के निशान से ऊपर बही. ये पहली बार हुआ जब यमुना का जल रिंग रोड और आई एस बी टी तक आ पहुंचा. इतना ही नहीं लोगों को नाव चलाकर बचाव कार्य में जुटना पड़ा. बारिश से गरीबों का नुकसान हुआ तो हुआ लेकिन सबसे जयादा जो नुक्सान दिख रहा है वो है कॉमन बेल्थ गेम्स की तैयारियों का जिससे पूरी दुनियां में भारत की साख दाव पर लगी है. कॉमन बेल्थ गेम्स के कुछ ही दिन बाकि रह गए हैं. लेकिन तैयारियां अभी भी अधूरी पड़ी हुई हैं. दोष हम बारिश को नहीं दे सकते, दोष हमारे देश के सर्वोच्च पद पर बीते नीति नियंताओं का है जो देश की आत्मा और जनता की भावनाओं से खिलबाड़ करने में ज़रा भी नहीं हिचकिचाते। जिन्हें देश को चलने के लिए चुना गया है वाही देश को डुबाने पर तुले हुए हैं. दोष जनता का भी है जो इक्कीसवी सदी के चलते जागरूक नहीं हो पाई है. क्या इन्ही दिनों के लिए हमारे पूर्वजों ने अपनी जान देकर देश को आज़ाद कराया था? क्या हम बड़ी-बड़ी डिग्रियां लेकर ऐसे ही चुपचाप बैठे रहेंगे? क्या हम अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए भ्रष्टाचार, अपराध, और स्वार्थ की खाई नहीं खोद रहे हैं जिसमें उसका घुट के मरना तय होगा? अगर समाज को देश को और विश्व को बचाना है तो हमें ही आगे आना होगा. आखिर सवाल हमारे अस्तित्व का है.

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