Thursday, August 12, 2010
ज़रा सोचिये!
बारिश में भींगना किसे अच्छा नहीं लगता. जब भी बारिश होती है लोग भींगने को तैयार हो जाते हैं. खासतौर पर सावन के महीने में तो दिल में जो कसक उठती है उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. यहाँ तक की भीगते समय बच्चों के चेहरे भी एक मीठी मुस्कान से खिल उठते हैं. कई बार तो भीगते समय हिंदी फिल्मों के पुराने गाने भी याद आते हैं. इतना ही नहीं बारिश आते ही हमारी जीब भी चटोरी हो जाती है. घरों में तरह-तरह के वयंजन पकते हैं.और हम बालकनी में खड़े होकर बड़े चाव से उन व्यंजनों का आनंद लेते हैं. लेकिन जरा सोचिये एक तरफ तो हम लोग बारिश का आनंद ले रहे होते हैं और दूसरी तरफ न जाने कितने लोग बारिश में अपना आशियाना खो देते हैं. लोगों के घर उजड़ जाते हैं और बारिश से आई बाड़ उन्हें तबाह कर देती है. सीधा सवाल ये है की ऐसे में हमारी, हमारे राजनेताओं की और हमारे प्रशासन क्या ज़िम्मेदारी बनती है? वहां भरी बारिश में लोग डूब रहे होते हैं और हम और हमारे नेता डनलप के गद्दे में सो रहे होते हैं. आपदा पीडतों के लिए जो राहत पहुचती है वह तब पहुचती है जब कई लोगों की जानें चली गयी होती हैं. सवाल ज़िम्मेदारी और मानवीयता का है. ज़रा सोचिये!
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